Sunday 23 December 2012

क़त्ल कर ले तू अपना.....


क़त्ल कर ले तू अपना,
मृत्यु की आगोश में सोजा,
अश्रु बहाने से बेहतर है,
एक बार में खुद का खून बहा |
कायर है तू,
लालची है तू,
चापलूस कही के,
मतलबी है तू,
उजाला,तिमिर को समझ उसका अनुयायी बना है,
बेगैरत कही के,सियार को सिंह समझ,
थर- थर कप रहा है, 

अभियुक्त बनके कटघरे में खड़ा हो जा,
सच्चाई के लिए एक बार हिम्मत तो दिखा,
झूट बोल-बोल के तुतला रहा है,
थोथे कही के देश को भी थोथा बना रहा है |
नेता बनने से है डरता श्वेत का,
तो समर्थक ही बन जा,
"चलता है" कहने से बेहतर है,
 सही दिशा पे चलता बन जा,

शेर है तो दहाड़ ज़रा,
मेमनों की आवाज़ बंद करा,
स्फुलिंग है जो सीने में राख बन रही,
उसे धधकती आग बना ज़रा,

क्रांति के लिए काम बड़ा चाहिए नहीं होता,
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ही "कुछ" करके दिखा,
"कुछ" की ताक़त असीमित है,
"कुछ" ईश से भी विशाल है,
"कुछ" तुम करलो तो करदे ये बवाल है,

"कुछ" की मंजिल अगम्य नहीं है,
आखिर "कुछ" है ही क्या,
छोटा सा काम है,
गलत को गलत और सही को सही कहने को "कुछ" कहते है,
नल से पानी गिर रहा हो, तो उसे बंद करने को "कुछ" कहते है,
सड़क पे गिरे कचरे को  कूड़ेदान में डालने को "कुछ" कहते है,
विद्यार्थी हो तो,सीख्लो उतना,
सीख सको जितना,
इसको भी "कुछ" कहते है,
दफ्तर में नित्य ढंग से काम करने को "कुछ" कहते है,
सरकारी हो तो बगैर रिश्वत के काम करने को "कुछ" कहते है,
और "कुछ" को डिफाइन करू कितना,
खुद को रिफाइन  करलो,
इसको भी "कुछ" कहते है,

इसलिए अगर ये "कुछ" भी है तू नहीं कर सकता,
तो एक बार में ही अपना क़त्ल कर ले ज़रा |

No comments:

Post a Comment