Friday 7 December 2012

मोर-कबूतर

उड़ता उड़ता आया कबूतर,
मोर से बोला  दे दे अपने पग,
जाना है मुझको शादी में,
लौटा दूंगा आके फिर,
बस टकरा जाए एक दुल्हन,
तू तो है खूबसूरत,
अपना मामला है थोडा मध्यांतर,
जूते देख के ही होती है कबूतरी  फ़िदा यहाँ पर,
 बस एक रात का है चक्कर,
दे दे न यार,
दिल बड़ा कर,

मोर थोडा सोच विचार कर,
इधर उधर टहल कर,
बगैर कहीं दस्तखत करवाए,
ले आया पग निकाल  कर,
अदल बदल कर लिए दोनों ने,
और उड़ गए अपनी अपनी मंजिल की तरफ,

रात गुजरी, दिन गुज़रे,
कबूतर लौटा घूम घाम कर,
पर देखा नहीं एक बार भी मोर की तरफ मुड़कर,

मोर चिल्लाया, उसकी तीखी आवाज़ ने सबको बहरा कर दिया,
पर कबूतर कबूतरी को लेके फुर्र  उड़ गया,

टूट पड़ा,
आसमान टूट पड़ा,
मोर ने नाच नाच के बुरा हाल कर दिया,
आसमान को भी रोने पे मजबूर कर दिया 

बरस बीत गए,
घाव भर गए,
दर्द अभी भी होता है,
पुरानी चोट का असर बादलों को बुलाता है,
मोर नाचता है, खूब नाचता है,
आसमान फिर रो  पड़ता है,

Poetry by Amit Saini....Snap from Deviantart.com......

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