Tuesday 24 July 2018

दायमा कहाँ है ?

कहानी की शुरुआत ऐसे नहीं होती,  यह तो कहानी का  मध्य के बाद का भाग है,
दायमा ने जब दुकान जमाई थी तो हमें बिलकुल नहीं लगा था की उसका अंजाम ये होगा,
खैर आज उसकी तेरवी है और हम सबको भोजन पर बुलाया गया है,
मुझे और हेम को भी, खाने में एक ही चीज़ बनी है, दायमा की बेसन मिर्च की परछाई,
सबको एक एक ही मिली,  मुझे और हेम को लेकिन दो दो,
हमने भी लेकिन अपनी  पहली ख़तम करके दूसरी सबको दिखाते हुए  चटकारे लेते हुए खायी,
बेसन मिर्च तीखी थी लेकिन हमने उससे खाने के बाद, एक बूँद भी पानी की नहीं पी,
हम दायमा के सच्चे प्रशंशक थे, और शायद इसीलिए हम बच गए,

बाकी जो भी लोग आये थे उनकी पानी पीने पश्चात एक एक करके मृत्यु हो गयी,
दृश्य बड़ा भयानक था, सूखे काका से लेके बादली गुड्डी सब के सब सो गए|

हमें पहले चैन की सांस आयी, और फिर मानो सांस ही रुक गयी, फागुन के आदमियों ने हमारे बालों को पकड़कर हमें उठा लिया,
हम दर्द के मारे चीखे जा रहे थे, और फागुन, मंद बुद्धि हमसे सवाल पूछ रहा था, कहा है दायमा ?
हमने कहा पहले हमें नीचे उतारो, दर्द सहेंगे या तुम्हारे बेशकीमती सवाल का जवाब देंगे ?
फागुन ने ये सुनकर हमें नीचे रखने का हुक्म दिया |
हमने अपने बालों पे हाथ रखा, काफी हाथ में आ गए, थोड़ी देर करहाने के बाद, हमने दर्द के बाद मिलते आराम की  सुखद अनुभूति करी,

फागुन ने प्यार से पुछा ,रबड़ी  मंगवाओ या ऐसे ही बता दोगे ?
हेम  मुस्कुरा दिया, तुम्हारी दूकान की रबड़ी  खायी है मैंने, इतनी बुरी भी नहीं है, जितनी हम दोनों ने उसे  बना दी,
हम लोग है तो कलाकार, तुम्हे खुद ही खुद की बनायीं चीज़ पसंद न आने लगी |
हमारे ठहाकों  से वो शमशान बनी  जगह गूँज  उठी, फागुन भी हमारे साथ हसने लगा, और फिर एकाएक बन्दूक निकाल के तान दी,
मैंने उसे  कहा हम इस खिलोने से  नहीं डरते, हम बन्दूक वालों के मोहल्ले से है, वहां तो ये हर खिड़की में दिखेगा,
फागुन ने कहा वहां तुम्हे पता है की तुम्हारे पास भी बन्दूक है और ये भी की  सामने वाला गोली नहीं चलाएगा, यहाँ सामने वाला मैं हूँ और मैं ज़रूर चला दूंगा,
दायमा का पता बिना जाने ? हेम ने पुछा

फागुन रो पड़ा और रोते हुए बोला  बता दो दायमा का पता,
जिसकी तेरवी है उसका पता पूछ रहे हो, मैंने अकड़ में कहा,
तुम्हे भी पता है की वो ज़िंदा है, फागुन बोला,
तो फिर हम यहाँ आते क्यों ? हेम ने पुछा,
दायमा ने तुम्हे भेजा हो, यह बोलकर फागुन असमंजस में पड़ गया
लेकिन क्यों मैंने फिर सवाल पुछा
इतने में ही हेम ने एक बोम्ब निकाला और उसके आदमियों की और फ़ेंक दिया,
मैंने भी मिटटी फागुन की आँखों में फ़ेंक दी और उसकी बन्दूक छीन ली,

और फिर, मेरे ऊपर पानी की बरसात हो गयी,
दायमा ने हम दोनों पर पानी की एक बाल्टी उंढेल दी थी,

उठो और काम पे लग जाओ, हेम तुम मंडी से सब्ज़ी लाओ और रब तुम पूरी होटल की सफाई में लग जाओ,
आज मुझे सारी  टेबल चमकी हुयी दिखनी चाहिए,

हेम बोला, सपने में इसकी तेरवी हुयी, और ये ज़िंदा है,
खैर दोष किसे दें, हम तो सपने में भी इसकी ही तरफदारी कर रहे थे,
ये सुनकर मैं चौंक गया, लेकिन ये सपना तो मैंने देखा था, तुझे कैसे पता,

तूने फिर मेरा सपना देखा,
कैसे करता है ये तू ?
हेम बिन बताये मंडी की और भाग गया और मैं उसके पीछे पीछे,