रोज़ नए लोग मिलते है,
मुझे ताकते है,
मेरा विश्लेषण करते है,
सहानुभूति से मुझे देखने लगते है,
उन्हें मालूम हो जाता है,
बुरा हुआ है,
रोज़ नए लोग मिलते है,
दोस्त कहाँ है?
मैं गुमराह हुआ हूँ ?
या, शहर नया है?
एक अनजान व्यक्ति,
मेरे कंधे पे हाथ रखता है,
अपना रास्ता पूंछता है,
कहता है, सुनता है,
रास्ता,
एक ही मंजिल पर लिए चलता है,
नया सिलसिला शुरू होता है,
रोज़ नए लोग मिलते है,
मेरा साया ढलता है,
रोज़ नए लोग मिलते है,
- अमित सैनी
No comments:
Post a Comment