एकजुट, होके खड़े होना,
हक के लिए काफी नहीं,
व्यर्थ ही लड़ना,
वक़्त खर्च करना मुनासिब नहीं,
हमें अकेले में भी, रँग भरने होंगे,
लगातार रंग भरने होंगे,
रगों से निचोड़ कर भी रँग भरने होंगे,
क्षणभंगुर कि नहीं चाहिए अगर प्रगति,
हमें निंदा भी करनी होंगी,
हमें शर्मिंदगी भी झेलनी होंगी,
उथल पुथल होगी जब संस्कृति,
तभी हमारे सूरज को नया यश प्राप्त होगा,
छाती पे लपेटने से काम नहीं चलेगा,
ढक के देह से रखना होगा,
तभी तिरंगे का विकास होगा,
हलकी सि बारिश मैं भी वरना,
बूंदो से लहू लुहान होगा,
हरा रंग लगा है आज,
कल सतरंगी था,
देखो कहीं बहके तो नहीं आ गया, फर्श पे,
रंग तिरंगे का,
कल सतरंगी था,
देखो कहीं बहके तो नहीं आ गया, फर्श पे,
रंग तिरंगे का,
-टीमा
No comments:
Post a Comment